मैं कहाँ खो गया…
मेरी राह कोई और है, मैं हूँ कहीं और
यह फासला कैसे आया, क्यूँ आया भला यह दौर |
सपने देखे जो हर दिन, हर पल, हर एक बार
ख्वाहिशें जो मन में उठती रहीं हज़ार |
उन्हें भूल के, किसी और की दुनिया क्यूँ सजाने चला
मैं अपना घर बर्बाद कर, किसी और का घर बनाने चला |
पैसे के पीछे भागता, अपनो से कोसों दूर
रातों पे रातें जागता, उल्लू ये हुज़ूर |
हर पल याद आता, अधूरा छूटा हुआ कोई काम,
मन विचलित हो उठता, करूँ जो पल भर भी विश्राम |
ना देखी सुबह की पहली किरण, ना शाम का सुहाना वातावरण
ना देख पाया तेरी इस सुंदर दुनिया को, ना ही आया प्रभु तेरी शरण |
एक एक करके दिन कटते रहे, और जीवन के सुनहरे पल घटते रहे
दिल में ही सिमट गये दिल के अरमान, और हम बस घुट ते रहे |
खुद का बचपन याद कर, कितना ही मुस्कुराया किए
सोचा था, बच्चों संग फिर से तोड़ा सा हम भी जिए
पर बच्चे कब बड़े हो गये पता ही ना चला,
और फिर एक दिन, शाम हुई पर मेरा दीपक ना जला |
आ गया था वक़्त फिर से जाने का, कहने का अलविदा
रह गया पीछे सब कुछ, आ रहा हूँ मैं ए खुदा |
बिना चादर के आया था, चादर में लिपट के गया
इस छोटे से फ़ासले को पार करने में, पूरा जीवन निपट गया |
पूरी जवानी कमाई थी इतनी दौलत,
पर ना कमा पाया प्यार, खुशियाँ या सेहत |
इतना तो बता ए खुदा, क्यूँ मैं वक़्त से पहले ही सो गया
दुनिया की भीड़ में तन्हा, मैं कहीं खो गया |
Philosophical thoughts reflected in the poem which corroborates with what is stated in vedas and bhagwad geeta.
No words to Express.
Reality of life
Wonderful Tushar
Really deep.
It will touch the chords of most people on a personal level.
Keep writing
Keep inspiring.
Cheers
True that ✅Yeh lock down kya Kuch Sikha Gaya , Aayina Dikha Gaya .
Ki Ae Dost ,ki Yeh bhi chalaa Jayega .
Tere pass Kum hai ? Ya sirf tujhe lagta hai 🦋