कोरोना से संघर्ष की एक मार्मिक दास्तान…
आँखों में उमड़ता समंदर यह कैसा,
आँसुओं को क्या बहने की राह मिल गयी |
शब्दों के जाल हमेशा पिरोती यह ज़ुबाँ,
आज क्यों एकदम से जैसे सिल गयी |
एक एक साँस गिन के क्यूँ है आ रही ?
क्यूँ लगे है ऐसा ज़िंदगी छूटी जा रही ?
दिल की धड़कनें क्यूँ अचानक तेज़ हो गयी,
फड़कती ये लौ कहीं बुझने वाली तो नहीं |
बड़ी मुश्किल से सुलझी थी जो ज़िंदगी,
कहीं फिर उलझने वाली तो नहीं |
कानों को चीरता सन्नाटे का यह शोर,
ऐसा सूनापन जैसे रेगिस्तान चारों ओर |
पानी में डूब रहा फिर भी हूँ प्यासा,
महसूस कर रहा खुद को बेबस, ठगा सा |
एक क़तरा भी देखो खून का ना बहा,
पर एक क़तरा भी जैसे खून का ना रहा |
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